आचार्य इंद्र-दत्त उनियाल जी के प्रति विनम्र आभार –
(TTT) पन्जाब ऋषि-मुनियों, संतों तथा विद्वानों के विशुद्ध चिंतन के कारण सदैव सम्मानीय रहा हैं। होशियारपुर में स्थित साधु-आश्रम जो की पंजाब-विश्वविद्यालय का अंग है, यह संस्कृत विद्वानों का प्रमुख केंद्र के रुप में पुरे भारत वर्ष में विश्व-विख्यात हैं। विद्वानों की लम्बी परम्परा में एक नाम आचार्य इंद्रदत्त उनियाल जी का आता हैं जो की वर्तमान समय में सबके लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। आप 95 वर्ष की आयु में भी VVRI, साधु- आश्रम में डायरेक्टर पद पर काम कर रहे हैं, इसके अतिरिक्त आपने अपना पूरा जीवन विद्यार्थियों को शिक्षित करने में समर्पित किया हैं, आपने अनेक ग्रंथो को लिख कर विद्यार्थियो का मार्ग-प्रशस्त किया हैं। आपका संस्कृत-जगत् में तथा विद्यार्थीयों के हृदय में ओर सम्मान तब अत्यधिक हो जाता हैं जब आपने अस्वस्थ होने के बाद भी विद्यार्थियों के लिए संस्कृत-शिक्षण, अप्रैल २०२४ को अपना ग्रन्थ प्रकाशित कर सिद्ध कर दिया कि बडे कुल में उत्पन्न हुए मनुष्य विद्याहीन होने से सुगंधरहित पुष्पों के समान शोभा नहीं पाते हैं (हितोपदेश, श्लोक संख्या ३९) अत्यधिक क्या कहा जाये