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श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का सप्तम दिवस: धर्म की स्थापना और आध्यात्मिकता का महत्व

श्रीमद् भागवत महापुराण कथा का सप्तम दिवस: धर्म की स्थापना और आध्यात्मिकता का महत्व

(TTT) श्रीमद् भागवत महापुराण कथा प्रवचन के सप्तम दिवस की श्रृंखला में कथा प्रवक्ता भागवत मनीषी आचार्य नारायण दत्त शास्त्री जी महाराज ने संपूर्ण भागवत का दिग्दर्शन करते हुए अनुक्रमणिका का वर्णन किया शास्त्री जी ने बताया कि जब-जब पृथ्वी में अन्याय अधर्म अनीति होती है सज्जनों दीन दुखियों पर अन्याय होता है तब तब परमात्मा कभी राम के रूप में कभी कृष्ण के रूप में कभी परशुराम के रूप में कभी वेदव्यास के रूप में कभी आदि गुरु शंकराचार्य के रूप में व अनेक गुरुओं संतो महापुरुषों के रूप में अवतार धारण करके धर्म की स्थापना अधर्म का विनाश एवं समस्त विश्व का कल्याण करते हैं आचार्य श्री ने सब का पूर्वज एवं सब के मूल में सनातन धर्म को माना वर्तमान में स्त्रियों के सतीत्व पर व्याख्यान करते हुए व्यास जी महाराज ने कहा यह वह देश है जहां स्त्री और धर्म का पालन करने वाली महिलाओं ने ब्रह्मा विष्णु और शिव को अपना बालक बना दिया वर्तमान आधुनिकता की चपेट में आए हुए नवयुवकों को अध्यात्म की ओर आना आवश्यक है क्योंकि विदेशी संस्कृति में पले बढे लोग आज भारत का अनुसरण कर रहे हैं और देश के युवा पश्चात सभ्यता में जाने को तत्पर है आज सत्संग की आवश्यकता नवयुवकों को अधिक है ताकि देश में जो अनर्थकारी घटनाएं घट रही है वह आध्यात्मिकता से ही दूर हो सकती है सुदामा चरित्र का विस्तार से वर्णन करके व्यास जी ने दत्तात्रेय जी के 24 गुरुओं की कथा का वर्णन किया गुरुकुल व्यवस्था एवं गौ संवर्धन पर व्यास जी ने विशेष जोर दिया अंत में भागवत की पूर्णाहुति हुई विशाल भंडारा हुआ कथा समाप्ति पर महंत मणी रामदास जी एवं देवेंद्र दास जी ने व्यास जी का पूजन करके आरती की अधिक संख्या में संगत ने प्रसाद ग्रहण किया इसी के साथ यह यज्ञ संपन्न हो गया